ICICI Bank RM committed fraud of Rs 4.58 crore
कोटा स्ट्रीट की वुल्फ: जब भरोसे का खून हुआ बैंक के भीतर ही
क्या आपने कभी सोचा है कि एक रिलेशनशिप मैनेजर, जो बैंक में आपकी जमा पूंजी की देखरेख करता है, वही आपकी मेहनत की कमाई पर हाथ साफ कर दे? यह कोई फिल्मी कहानी नहीं है, बल्कि हकीकत है ICICI बैंक, कोटा शाखा की एक पूर्व कर्मचारी साक्षी गुप्ता की, जिसने करीब 4.58 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी कर बैंकिंग सिस्टम को हिला कर रख दिया।

कौन हैं साक्षी गुप्ता?
ICICI Bank RM committed fraud of Rs 4.58 crore
साक्षी गुप्ता, ICICI बैंक की कोटा ब्रांच में रिलेशनशिप मैनेजर के पद पर कार्यरत थीं। उनकी जिम्मेदारी थी ग्राहकों के साथ मजबूत संबंध बनाना और उन्हें बैंकिंग सेवाओं के प्रति मार्गदर्शन देना। लेकिन उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए बैंक और ग्राहकों – दोनों के साथ विश्वासघात किया।
धोखाधड़ी की साजिश
ICICI Bank RM committed fraud of Rs 4.58 crore
2020 से लेकर 2023 तक के दो सालों में साक्षी ने 41 ग्राहकों के नाम पर कुल 110 फिक्स्ड डिपॉजिट्स (FDs) से ₹4.58 करोड़ रुपये निकाल लिए। न किसी को OTP आया, न कोई SMS अलर्ट गया, न ही ऑडिट में कोई गड़बड़ी पकड़ी गई। उन्होंने ग्राहकों के रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर बदल दिए ताकि कोई अलर्ट उन तक न पहुंचे और उनके FD बिना किसी संदेह के टूटते रहे।
पैसे का क्या किया?
ICICI Bank RM committed fraud of Rs 4.58 crore
यह रकम उन्होंने शेयर बाजार में निवेश कर दी – शायद जल्दी अमीर बनने का सपना था। लेकिन बाजार ने उन्हें वो सबक सिखाया जो बैंक नहीं सिखा पाया। उन्होंने सब कुछ गवां दिया – एक-एक पैसा। न बैंक का रहा, न ग्राहक का।
2.5 साल तक सिस्टम सोता रहा
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह सारा खेल पूरे ढाई साल तक चलता रहा और किसी को भनक तक नहीं लगी। बैंक के अंदर इतनी बड़ी रकम की हेराफेरी हो रही थी और कोई आंतरिक ऑडिट अलर्ट तक नहीं आया। यह केवल तकनीकी चूक नहीं, बल्कि व्यवस्थागत विफलता थी।
क्या आपके पैसे सुरक्षित हैं?
यह मामला एक बड़ा सवाल खड़ा करता है – अगर ICICI जैसा बड़ा निजी बैंक इस प्रकार की धोखाधड़ी रोकने में विफल रहा, तो आम आदमी कैसे भरोसा करे कि उसका पैसा बैंक में सुरक्षित है?
बैंकिंग में आंतरिक नियंत्रण (Internal Controls) और ग्राहकों को नियमित अलर्ट मिलना कोई अतिरिक्त सुविधा नहीं, बल्कि उनकी आर्थिक सुरक्षा के लिए जरूरी ‘ऑक्सीजन’ है। एक छोटी सी लापरवाही लाखों-करोड़ों की हानि में बदल सकती है।
निष्कर्ष
साक्षी गुप्ता का मामला सिर्फ एक व्यक्ति की लालच की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे बैंकिंग तंत्र के लिए एक चेतावनी है। अब समय है जब बैंकों को अपनी सुरक्षा व्यवस्था और ग्राहक संचार प्रणाली को और मजबूत करना होगा। क्योंकि जहां भरोसा टूटता है, वहां बैंकिंग नहीं, धोखाधड़ी शुरू होती है।